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Alakshit Gaurav
Spar

Alakshit Gaurav

innbundet, 2018
Hindi
आंचलिक कथाकार के रूप में ख्याति के विपरीत इस आलोचनात्मक कृति में रेणु में एक वैश्विक रचनाकार का संधान उपलब्ध है। जाहिर है रेणु का महत्त्व इस कृतिकार के लिए वही नहीं है जो अन्य के लिए है। आखिर क्यों? कथाकार रेणु को देखने-परखने का अलग ही अन्दाज है इस पुस्तक में जो मौलिक ही नहीं, सर्वथा नवीन भी है। प्रस्तुत कृति पारम्परिक मतों से लेखक की मतभिन्नता तो प्रस्तुत करती ही है, अपने औचित्य का सतर्क-सप्रमाण प्रतिपादन भी करती है। अस्तु, रेणु के महत्त्व-निर्धारण के लिए अलग नजरिये की गम्भीर प्रस्तावना करती यह आलोचना पुस्तक वैश्विक पाठकों को मिलने वाले साहित्य-रस और विचार-सार का खुलासा भी करती है।'भाषा की जड़ों को हरियाने वाला रसायन जो उसे जिन्दा रखता है, उसे सम्पन्न करता है, वह 'लोक' का स्रोत है। इस स्रोत की राह दिखाने के लिए हम रेणु के ऋणी हैं।' हमारे समय की वरिष्ठतम गद्यकार कृष्णा सोबती ने अपने साक्षात्कारों आदि में अनेक बार इस बात का उल्लेख किया है। उन्हें लगता है कि रेणु ने सभ्य भाषाओं और नागरिकताओं के इकहरे वैभव के बीच भारत के उस बहुस्तरीय वाक् को स्थापित किया जो अनेक समयों की अर्थच्छटाओं को सोखकर संतृप्त ध्वनियों में स्थित हुआ है और वास्तव में वही है जो भारत के असली विट और सघन अर्थ-सामर्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है।रेणु ने अपने लोक के आनन्द और अवसाद इन्हीं ध्वनियों, इन्हीं भंगिमाओं में व्यक्त किये। दुर्भाग्य से देश के किसी और हिस्से से ऐसा साहस करने वाले लेखक न आ सके, और सिर्फ यही नहीं, रेणु को और उनकी वाक्-भंगिमाओं को समझने वाले लोगों की भी कमी महसूस की गई। परिणाम यह कि उनको बड़ा तो मान लिया गया लेकिन उनका बहुत कुछ ऐसा रह गया जिसे न समझा गया, न समझा जा सका।यह पुस्तक रेणु के उसी अलक्षित को लक्षित है। लेखक का कहना है कि 'इसके पूर्व र
Undertittel
Renu
ISBN
9789387462199
Språk
Hindi
Vekt
46 gram
Utgivelsesdato
1.1.2018
Antall sider
272