सीमा पर खड़े जवान भी हाड़ माँस के बने इंसान ही होते हैं, जिनमें हम समय बेसमय देवत्व का आरोपण करते हैं। इत्तेफाक से समाज जब साहित्य रचता है तो ये जवान सिर्फ नायक होते हैं, जहाँ ये …