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Ande, själ & kropp: tänkande & praktik
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भारत में जातिप्रथा विषय कितना जटिल है, जिसके संबंध में विचार व्यक्त करने हैं। अनेकों योग्य विद्वानों ने जाति के रहस्यों को खोलने का प्रयास किया है, किंतु यह दुःख की बात है कि यह …
अधिकांश पाश्चात्य राजनीति-विशारदों एवं इतिहासज्ञों का कथन है कि भारत कभी भी राष्ट्र गठन नहीं कर सका था और न भारतीयों में कभी इसकी पूर्ण योग्यता ही थी। इसी बात को लेकर योगिराज श्री …
मेरा एक सुखद स्वप्न है कि सभी जन आपस में प्रेम-प्यार से मिलकर रहेंगे तथा घृणा, ईर्ष्या, द्वेष का कहीं कोई स्थान नहीं होगा। आने वाले समय में भारत विश्व का मार्ग दर्शक बनेगा। भारत …
ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ को धर्मशास्त्रों में सनातन सिद्धान्तों का रूप दिया। पाप और पुण्य की अनेकों कथाएं गढ़कर उन्होंने स्त्री को पुरुष के समान नहीं माना है। धर्मग्रंथों का …
ईश्वर सर्वदा सत्य में ही है। वेद, शास्त्र एवं पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। सत्य बोलने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हमें याद नहीं रखना पड़ता कि हमने किससे …
वर्तमान में हम अपने यौवन के उन्माद में अंधे हुए जा रहे हैं, विश्व को आनंद का एहसास प्रदान करने के लिए क्योंकि हम आनंद स्वरूप हैं। आनंद के मूर्तिमान प्रतीक की तरह हम संसार में विचरण …