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हिंदुत्व का दर्शन क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है, जो सभी की तार्किक विचार श्रृंखला में उत्पन्न होता है, परंतु उसकी तार्किक श्रृंखला के अलावा भी इसका इतना महत्व है कि इसे बिना विचार …
भारत में जातिप्रथा विषय कितना जटिल है, जिसके संबंध में विचार व्यक्त करने हैं। अनेकों योग्य विद्वानों ने जाति के रहस्यों को खोलने का प्रयास किया है, किंतु यह दुःख की बात है कि यह …
अधिकांश पाश्चात्य राजनीति-विशारदों एवं इतिहासज्ञों का कथन है कि भारत कभी भी राष्ट्र गठन नहीं कर सका था और न भारतीयों में कभी इसकी पूर्ण योग्यता ही थी। इसी बात को लेकर योगिराज श्री …
प्रस्तुत शीर्षक 'बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स' से ऐसा आभास होता है कि यह इन दोनों व्यक्तियों के बीच समानता को बताने वाला है या विषमता को दर्शाने वाला है। इन दोनों के बीच समय का बहुत …
इस संसार में सर्वत्र सामयिक गति है। नित्य तुम जागते हो और सोते हो, नित्य सोते हो और जागते हो। जिस प्रकार सोना और जागना ठीक क्रमपूर्वक एक दूसरे के बाद होता है, उसी प्रकार वेदांत के …
मेरा एक सुखद स्वप्न है कि सभी जन आपस में प्रेम-प्यार से मिलकर रहेंगे तथा घृणा, ईर्ष्या, द्वेष का कहीं कोई स्थान नहीं होगा। आने वाले समय में भारत विश्व का मार्ग दर्शक बनेगा। भारत …
हिंदू समाज-संगठन में क्या विलक्षणता है? साधारण हिंदू, जिसे शोधकर्ताओं के शोध की जानकारी नहीं है, वह तो यही कहेगा कि उसके समाज-संगठन में तो कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे विलक्षण, असाधारण …
प्राचीन भारत के साहित्य में भगवद्गीता का क्या स्थान है? क्या यह हिंदू धर्म का उसी प्रकार का एक धर्मग्रंथ हैं, जिस प्रकार ईसाई धर्म की बाइबिल है। हिंदू इसे अपना धर्मग्रंथ मानते हैं। …
संक्षेप में हिंदू धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा चलाया हुआ नहीं है। यह तो प्रकृति का धर्म है और उसी के शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित है। यह शाश्वत्व ही तो सनातन है, और जो सनातन है, वही …